जय जगर्नाथ!
तू नहलु काहार, हबु की तु महोर।
सारा जिबन देलु दुख , नांहि आशा आउ सुखार।
देला जीए जनम तते , देलु ताकु कारागार टीए।
जीए तते पोसीला , बुढा कळुकु कंदील।
सुदामा तोहर भक्त दासिया , तिन्नी मुट्ठा चणा जुगुरु भिक् मागी चळीला।
राधा मांईर प्रेम बड़ , कलु रासळीळा न हेलू ताहार।
सोहळ सहश्र भांगीला घर , न हलु गोटिये गोपीर।
हेला महाभारत तो आज्ञां रे , भाई - भाई र नेला प्राण तो आखि आघरे।
कौरव - पांडव परी हेला तो बंश नाश ,
न हलु निजर , तू हबु काहार।
हेला महाभारत तो आज्ञां रे , भाई - भाई र नेला प्राण तो आखि आघरे।
कौरव - पांडव परी हेला तो बंश नाश ,
न हलु निजर , तू हबु काहार।